Kavita Jha

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मैं इंसान नहीं...हूं इक एलियन

कभी कभी लगता है
मैं एक स्त्री इस ग्रह की प्राणी हूं ही नहीं
मुझ संग होता व्यवहार ऐसा
जैसे मैं एक इंसान ना होकर
एलियन हूं जो दूसरे ग्रह से आई हूं
मेरी कोई इच्छा या भावना है ही नहीं
दूसरों के लिए ही बनी हूं मैं
पल भर भी खुद के लिए समय नहीं
खुश रहने की कीमत देनी पड़ती है हर पल
सबको खुश रखना जैसे करना है मुझको जादू
स्त्री नहीं मैं हूं इक एलियन
जन्म से ही अपेक्षाओं के बोझ में दबी
जीती रहती है इक स्त्री
भाई और पिता की सेवा करना
आऐ बाहर से तो थके हुऐ हैं वो
चाय पानी नास्ता खाना सब समय पर देना
उनके कपड़े-जूते नहाने का पानी साबुन शैंपू तेल
सब कुछ समय पर उनके हाथों में देना
पर हम तो घर और बाहर
सभी काम संभाल सकते हैं बिना थके हुए
बेटी सीखती घर के सारे काम
मां के कामों में हाथ बटाना
आती जब ससुराल
उम्मीदें उससे की जाती हजार
घर संभालेंगी पूरा
सास ससुर की सेवा संग
पति और बच्चों का रखेगी पूरा ध्यान
गलती अगर होगी किसी की
तो मानी जाएगी उसी की
उसकी मेहनत से बच्चे अगर लायक बने
और काम करे अच्छे
तो पिता की संतान हैं
गुणगान उन्हीं का होगा
अगर कमी थोड़ी सी रह जाए
बच्चे करें कोई गलती
तो मां की ही है गलती
जो ध्यान नहीं दिया बच्चे पर
कितनी उम्मीद रखी जाती है इक स्त्री से
जैसे वो इंसान नहीं है कोई एलियन
जिसके पास है जादू की शक्ति
जो कर सकती है कुछ भी
तभी तो लगता है अक्सर
मैं इंसान नहीं हूं इक एलियन
***
कविता झा'काव्या कवि'
©®


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4 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

28-Oct-2021 09:48 AM

Nice

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जबरदस्त 👌👌👌👌

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Seema Priyadarshini sahay

12-Oct-2021 04:58 PM

सबकी एक ही गाथा.. क्या करें.. पर एलियन बहुत खतरनाक होते हैं।

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